संसाधन एवं विकास: NCERT कक्षा 10, अध्याय 1 - आसान नोट्स 🌍
1. संसाधन का अर्थ 🌱
- परिभाषा: पर्यावरण में उपलब्ध वस्तुएं जो आवश्यकताएं पूरी कर सकें, प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो, आर्थिक रूप से संभव और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हों, वे संसाधन हैं (जल, बिजली, कपड़े, किताबें). 💧⚡
- रूपांतरण: प्रकृति, प्रौद्योगिकी और संस्थाओं के पारस्परिक संबंध से संसाधन बनते हैं. 🛠️
- मानव भूमिका: मानव संसाधन का हिस्सा, पर्यावरण को संसाधन में बदलते हैं. 👨🌾
2. संसाधनों का वर्गीकरण 📋
उत्पत्ति के आधार पर:
- जैव: जीवमंडल से, जीवन युक्त (मानव, वनस्पति, पशुधन). 🌳
- अजैव: निर्जीव (चट्टानें, धातुएं). 🪨
- समाप्यता के आधार पर:
- ---------> नवीकरण योग्य: पुन: उत्पन्न (सौर ऊर्जा, जल, वन). ♻️
- ---------> अनवीकरण योग्य: सीमित, लंबे समय में बनते (खनिज, जीवाश्म ईंधन). ⛽
स्वामित्व के आधार पर:
- ---------> सामुदायिक: सभी के लिए (गाँव की चारागाह, पार्क). 🌲
- ---------> राष्ट्रीय: देश का (खनिज, जंगल, 12 मील समुद्री क्षेत्र). 🇮🇳
- ---------> अंतरराष्ट्रीय: वैश्विक नियंत्रण (200 मील से परे महासागर). 🌐
- ---------> व्यक्तिगत: निजी (किसानों की भूमि, घर). 🏠
- विकास के स्तर के आधार पर:
- ---------> संभावी: उपलब्ध लेकिन अप्रयुक्त (राजस्थान में पवन ऊर्जा). 💨
- ---------> विकसित: सर्वेक्षणित, उपयोग में (कोयला खदानें). ⛏️
- ---------> भंडार: तकनीक के अभाव में अनुपयोगी (जल से हाइड्रोजन). 💧
- ---------> संचित कोष: भविष्य के लिए (बाँधों का जल). 💦
3. संसाधन विकास 🌿
- महत्व: जीवन यापन और गुणवत्ता के लिए आवश्यक. 🌟
- समस्याएं:
- अंधाधुंध उपयोग से हास, असमान वितरण (अमीर-गरीब). 💰
- पर्यावरणीय संकट (ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, भूमंडलीय तापन, ओजोन परत अवक्षय, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण). 🌡️
- प्रभाव: तेल खत्म होने पर जीवनशैली प्रभावित (परिवहन, उद्योग). 🚗
- समाधान: न्यायसंगत वितरण, सतत् पोषणीय विकास. ⚖️
4. सतत् पोषणीय विकास 🌱
- अर्थ: पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए, भविष्य की जरूरतों का ध्यान रखे. ♻️
- रियो सम्मेलन (1992): 100+ देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष रियो डी जेनेरो( ब्राज़ील ) ने जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता पर हस्ताक्षर, एजेंडा 21 स्वीकृत. 🌍
- एजेंडा 21: वैश्विक सहयोग से पर्यावरण संरक्षण, गरीबी उन्मूलन. 📜
5. संसाधन नियोजन 📊
- आवश्यकता: भारत में संसाधनों की असमानता (झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़-खनिज( कोयला) प्रचुर भंडार, राजस्थान-जल की कमी). 🗺️
- चरण: संसाधनों का सर्वेक्षण और तालिका बनाना. 📊
🌍 संसाधन संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
📌 क्या?
* ---------> संसाधनों के संरक्षण को वैश्विक स्तर पर संगठित तरीके से बढ़ावा देने के प्रयास।
📌 कब और कैसे?
- 1968 – क्लब ऑफ रोम → पहली बार संसाधनों के संरक्षण की व्यवस्थित वकालत की गई।
- 1974 – शुमेसर की पुस्तक “स्माल इज ब्यूटीफुल”→ गांधीजी के विचारों की पुनरावृत्ति की गई। → छोटे पैमाने पर स्थायी विकास की बात।
1987 – ब्रुन्डलैण्ड आयोग रिपोर्ट (Brundtland Commission Report)
→ “सतत् पोषणीय विकास” (Sustainable Development) की संकल्पना दी।
→ संसाधन संरक्षण को वैश्विक एजेंडा बनाया।
→ यह रिपोर्ट पुस्तक के रूप में "हमारा सांझा भविष्य" (Our Common Future) के नाम से प्रकाशित हुई।- 1992 – पृथ्वी सम्मेलन, रियो डी जेनेरो, ब्राजील
- → पर्यावरण और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता।
- → संसाधनों के संरक्षण को विश्व के सभी देशों का साझा उत्तरदायित्व बताया।
📌 क्यों?
→ संसाधनों का अत्यधिक दोहन और असंतुलित उपयोग भविष्य के लिए खतरा बन सकता है।
→ संतुलित और न्यायपूर्ण उपयोग हेतु वैश्विक नीति की आवश्यकता महसूस की गई।
प्रौद्योगिकी और संस्थागत ढांचा तैयार करना. 🛠️
- राष्ट्रीय विकास से समन्वय. 🤝
- उदाहरण: पंचवर्षीय योजनाओं से प्रयास, क्षेत्रीय संतुलन. 📈
6. भू-संसाधन 🌍
- महत्व: जीवन, अर्थव्यवस्था, परिवहन पर आधारित. 🏞️
- भू-आकृतियाँ: भारत में 43% मैदान (कृषि), 30% पर्वत (पर्यटन), 27% पठार (खनिज). 🏔️
- भू-उपयोग: वन, कृषि, बंजर, गैर-कृषि (सड़क, उद्योग), परती भूमि. 🌾
- प्रारूप: 54% क्षेत्र खेती योग्य, पंजाब और हरियाणा (80%) vs. अरुणाचल , मिजोरम, मणिपुर और अंडमान निकोबार दीप समूह 10%). 📏
- 🌟🌟🌟 हमारे देश में राष्ट्रीय वन नीति 1952 द्वारा निर्धारित 👇🏻
- चिंता: वन 33% लक्ष्य से कम, भूमि निम्नीकरण. 🌳
7. भूमि निम्नीकरण और संरक्षण 🛡️
- वर्तमान स्थिति: 13 करोड़ हेक्टेयर निम्नीकृत (28% वन, 56% जल अपरदन). 🌵
- कारण: वनोन्मूलन, अति पशुचारण, खनन, अति सिंचाई (लवणीयता). ⚠️
- उपाय: वनारोपण, रक्षक मेखला, खनन नियंत्रण, अपशिष्ट प्रबंधन. 🌱
8.“मृदा संसाधन”
📦 मृदा संसाधन
- मृदा = सबसे महत्वपूर्ण नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन।
- यह पौधों की वृद्धि का माध्यम है → जीवों का पोषण करती है।
- मृदा = जीवंत तंत्र (Living system)।
- कुछ सेंटीमीटर मृदा बनने में लाखों साल लगते हैं।
🔑 मृदा बनने के कारक:
- ऊँचाई-नीचाई (उच्चावच)
- जनक शैल (Parent Rock)
- जलवायु
- वनस्पति और जैव पदार्थ
- समय
🔁 प्राकृतिक प्रक्रियाएँ:
- तापमान परिवर्तन
- जल, हवा, हिमनदी की क्रिया
- रासायनिक और जैविक परिवर्तन
📦 1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)
- सबसे ज्यादा फैली हुई और उपजाऊ मृदा।
- सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र द्वारा लाई गई मिट्टी।
- उत्तर भारत, गुजरात, राजस्थान, पूर्वी तटीय मैदान में पाई जाती है।
🔸 आयु के आधार पर प्रकार:
- बांगर (पुरानी) – कंकर ज्यादा।
- खादर (नई) – महीन कण।
🔸 उपयुक्त फसलें: चावल, गेंहू, गन्ना, दालें
- अधिकतर पोटाश, फास्फोरस और चूना युक्त
- गहन कृषि होती है
- जनसंख्या घनत्व भी अधिक होती है
📦 2. काली मृदा (Black Soil)
- अन्य नाम: रेगर मिट्टी या काली कपास मिट्टी।
- कपास के लिए विशेष उपयुक्त।(BLACK COTTON SOIL)
📍 पाई जाती है: दक्कन पठार ( बेसाल्ट) क्षेत्र के उत्तर पश्चिमी भाग
📌 फैली: महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोदावरी-कृष्णा घाटियाँ।
**निमार्ण: लावा जनक शैल
🔸 विशेषताएँ:
- महीन कण
- पानी सोखने की अधिक क्षमता
- गर्मी में दरारें पड़ती हैं
- गीली होने पर चिपचिपी
- जुताई: मानसून प्रारंभ होने की पहली बौछार से शुरू
📦 3. लाल और पीली मृदा (Red & Yellow Soil)
📍 स्थान: ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा मैदान का दक्षिणी भाग, पश्चिमी घाट।
🔸 रंग कारण:
- लाल = लौह तत्व (Iron)
- पीला = जलयोजन (Hydration)
🔸 जनक शैल: रवेदार आग्नेय व रूपांतरित चट्टानें
📦 4. लेटराइट मृदा (Laterite Soil)
- शब्द 'Later' = ईंट (Brick)
- 🔹 निर्माण कैसे होता है?
- --------->▪️ क्षेत्र: उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय
- --------->▪️ ऋतुएँ: आर्द्र + शुष्क (बारी-बारी से)
--------->▪️ प्रक्रिया:
→ भारी वर्षा
→ अत्यधिक निक्षालन (Leaching)
→ पोषक तत्व बह जाते हैं
📍 🔹 भारत में स्थान
- ▪️ कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु
- ▪️ महाराष्ट्र (प. घाट), ओडिशा
- ▪️ पश्चिम बंगाल (कुछ भाग)
- ▪️ उत्तर-पूर्वी राज्य
🔸 मुख्य विशेषताएँ
- ▪️ pH < 6.0 (अम्लीय)
- ▪️ गहराई: गहरी
- ▪️ पोषक तत्व: कम
- ▪️ ह्यूमस:
- ---------> ➤ वन क्षेत्र = अधिक
- --------->➤ विरल वन/शुष्क क्षेत्र = कम
🔸 फसलें
- ▪️ ☕ चाय, कॉफी → कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु
- ▪️ 🌰 काजू → तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल
📦 5.🏜️ मरुस्थली मृदा (Desert Soil)
🔹 शब्द अर्थ
▪️ "मरुस्थल" = रेगिस्तान या शुष्क क्षेत्र
🔹 निर्माण कैसे होता है?
▪️------> ➤ क्षेत्र: शुष्क जलवायु वाले रेगिस्तानी क्षेत्र
▪️ प्रक्रिया:
→ वर्षा बहुत कम
→ उच्च तापमान
→ अधिक वाष्पन (Evaporation)
→ मृदा में लवण (Salts) जमा हो जाते हैं
→ ह्यूमस और नमी की मात्रा बहुत कम
🔹 भारत में स्थान
- ▪️ राजस्थान (थार मरुस्थल)
- ▪️ गुजरात (कच्छ क्षेत्र)
- ▪️ हरियाणा व पंजाब के कुछ शुष्क क्षेत्र
🔸 मुख्य विशेषताएँ
- ▪️ बनावट: रेतीली और लवणीय
- ▪️ रंग: लाल या भूरा (कुछ क्षेत्रों में)
- ▪️ pH: क्षारीय (Alkaline)
- ▪️ ह्यूमस और नमी: बहुत कम
- ▪️-----> ➤ नीचे की सतह में:
- ➤ कैल्शियम की मात्रा अधिक
- ➤ चूने के कंकर पाई जाते हैं
- ▪️ जल अंतः स्यंदन (Infiltration): रुक जाता है
▪️ बिना सिंचाई → खेती मुश्किल
▪️ सही सिंचाई और सुधार तकनीक से → खेती संभव
▪️ उदाहरण: पश्चिमी राजस्थान में अब सिंचित कृषि हो रही है
🔸 फसलें (सिंचाई होने पर)
▪️ बाजरा, मूँग, ग्वार
▪️ खजूर, मेहंदी, अरंडी
📦 6. 🌲 वन मृदा (Forest Soil)
🔹 शब्द अर्थ
▪️ "वन मृदा" = जंगल या पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली मृदा
🔹 निर्माण कैसे होता है?
▪️ क्षेत्र: पर्वतीय और ऊँचे स्थानों वाले क्षेत्र
▪️ पर्यावरण:
→ पर्याप्त वर्षा
→ घने वन
→ ढलान और ऊँचाई के अनुसार मृदा में भिन्नता
🔹 भारत में स्थान
- हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र
- पूर्वोत्तर भारत
- पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट
- कश्मीर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि
🔸 मुख्य विशेषताएँ
▪️ ढालों पर मृदा:
→ मोटे कणों वाली
→ कम उपजाऊ
▪️ नदी घाटियों में:
→ दोमट या सिल्टदार (उपजाऊ)
▪️ हिमाच्छादित क्षेत्रों में:
→ अधिक अपरदन (Erosion)
→ अम्लीय (Acidic)
→ ह्यूमस रहित (कम जैविक तत्व)
▪️ नदी सोपान व जलोढ़ पंख क्षेत्रों में:
→ उपजाऊ मृदा
🔸 फसलें (जहाँ मृदा उपजाऊ हो)
▪️ मक्का
▪️ आलू
▪️ जौ
▪️ कुछ स्थानों पर सेब और चाय
🌿 7. मृदा अपरदन और संरक्षण (Soil Erosion & Conservation)
🌪️ मृदा अपरदन क्या है?
🔹 परिभाषा:
▪️ मृदा के कटाव और बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।
▪️ मृदा का निर्माण और अपरदन साथ-साथ चलता है, लेकिन जब संतुलन बिगड़ता है, तो मृदा हानि होती है।
⚠️ मृदा अपरदन के कारण
🔹 मानवीय कारण:
- वनों की कटाई (वनोन्मूलन)
- अति-चराई (Overgrazing)
- निर्माण कार्य
- खनन (Mining)
- गलत कृषि तकनीक (जैसे ढाल पर सीधा हल चलाना)
🔹 प्राकृतिक कारण:
- ▪️ बहता जल
- ▪️ तेज़ पवन
- ▪️ हिमनद (Glaciers)
🌊 अपरदन के प्रकार
1️⃣ अवनालिका अपरदन (Gully Erosion)
- ▪️ बहता जल मिट्टी को काटकर गहरी नालियाँ (Awnalikayen) बनाता है।
- ▪️ ऐसी भूमि उत्खात भूमि (Bad Land) कहलाती है।
- ▪️ उदाहरण: चंबल बेसिन में इसे खड्ड भूमि (Ravine Land) कहते हैं।
2️⃣ चादर अपरदन (Sheet Erosion)
▪️ ढाल पर जब पानी एक परत में बहता है और ऊपरी मृदा को बहा ले जाता है।
3️⃣ पवन अपरदन (Wind Erosion)
▪️ तेज़ हवा ढालू या समतल भूमि से मृदा को उड़ा ले जाती है।
▪️ विशेष रूप से शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्रों में होता है।
✅ मृदा संरक्षण के उपाय
1️⃣ समोच्च जुताई (Contour Ploughing)
▪️ ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाया जाता है, जिससे पानी का बहाव धीमा होता है।
2️⃣ सोपान कृषि (Terrace Farming)
▪️ ढाल पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर मिट्टी और पानी को रोका जाता है।
▪️ उदाहरण: पश्चिमी और मध्य हिमालय
3️⃣ पट्टी कृषि (Strip Farming)
▪️ खेतों को छोटी पट्टियों में बाँट कर फसल और घास को बारी-बारी से लगाया जाता है, जिससे पवन बल कम होता है।
4️⃣ रक्षक पट्टियाँ (Shelter Belts)
- ▪️ पेड़ों को कतारों में लगाकर पवन की गति को धीमा किया जाता है।
- ▪️ विशेष रूप से पश्चिमी भारत में रेत के टीलों को रोकने में उपयोगी।
🌳 उदाहरण – जन भागीदारी से सफलता
📍 सुखोमाजरी गाँव (हरियाणा)
- ▪️ 1976 में वृक्ष घनत्व: 13 पेड़ / हेक्टेयर
- ▪️ 1992 में बढ़कर: 1272 पेड़ / हेक्टेयर
- ▪️ 1979-84 में आमदनी: ₹10,000 → ₹15,000
📍 झबुआ जिला (म.प्र.)
- ▪️ जलविभाजक प्रबंधन द्वारा
- ▪️ 29 लाख हेक्टेयर भूमि हरा-भरा किया गया
- ▪️ यह भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 1% है।
📝 निष्कर्ष (Conclusion)
- ▪️ मृदा अपरदन एक गंभीर समस्या है, लेकिन
- ▪️ जन भागीदारी, सही कृषि तकनीक, और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करके इसे रोका जा सकता है।
- ▪️ यह सिर्फ भूमि ही नहीं, समाज और अर्थव्यवस्था को भी समृद्ध करता है।
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