शीत युद्ध के प्रथम दौर में कई सारे छिटपुट और छोटी मोटी घटनाएं सामने आई , लेकिन फिर भी युद्ध नहीं हो पाया। क्यों?
इससे पहले जैसा कि आपने जाना कि गुटनिरपेक्ष राष्ट्र की भूमिका बहुत अहम रही है और इसकी शुरुआत भारत के पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की , फिर UNO की भी भूमिका रही , जैसा कि आप उससे पहले जान चुके हैं।
और आखिरकार इन दो दोनों देशों के बीच युद्ध में विजय प्राप्त करने हेतु ज्यादा से ज्यादा हथियार , जासूसी के लिए सामग्री जैसी अन्य हथकंडे अपनाए गए , जिसकी बदौलत इन दो महा शक्तियों की आर्थिक व्यवस्था बिल्कुल खराब हो गई , फल स्वरुप यह हुआ कि इन दोनों की जनता बहुत नाराज और क्रोधित हो गई।
अगर फिर भी यह दोनों युद्ध के लिए तैयार हो जाते तो जो युद्ध में नुकसान तो होता ही है लेकिन देश में भी भारी गुस्से की वजह से आंदोलन शुरू हो जाती है और जो इसके विपक्षी पार्टी हुए होंगे वह तख्तापलट का बिगुल फूंक देते जो एक सामान सी बात यह होती कि इन दोनों देशों को अपने ही अंदर एक भारी गुस्सा और सरकार की जाने का तोहफा मिल जाता।
जिस तरह कुछ दिन पहले आपने इजराइल और फिलिस्तीन का मामला देखा, जहां इजराइल की क्रूर सेना वह फिलिस्तीन के कूचे कूचे , स्कूल , अस्पताल , हॉस्पिटल पर भी हमला करने से नहीं चूक रही थी। वही उसी इजराइल के अंदर आर्थिक स्थिति बिगड़ने की वजह से नेतन्याहू की सरकार जाती रही , और इसका फायदा नेफ्ताली सरकार को मिला । इसी तरह इन दो महा शक्तियों ने यह सोच लिया कि अगर हम हमला करते हैं तो दोनों तरफ से हम ही जाएंगे ।
=> फल स्वरुप संयम बरतना ही बेहतर होगा।
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