नमाज की फजीलत / नमाज क्या है / नमाज की अहमियत

नमाज की फजीलत

इस्लामी इबादत में नमाज को सबसे इम्तियाजी मुकाम हासिल है इसी इंतजार की शान की वजह से अल्लाह ताला ने नमाज की फरजीयत का हुकुम शबे मेराज में हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को आसमानों पर बुलाकर मरहमत फ़रमाया, यह वाकया हिजरत से पहले मक्का में आया, जिसके वक्त के बारे में अलग-अलग मत हैं, इमाम नववी ने कहा है कि पुनः प्रवर्तन के पांचवे साल मतलब के हिजरत से साथ 8 साल पहले होने वाले बात को सही ठहराया।

नमाज की फजीलत / नमाज क्या है / नमाज की अहमियत


नमाज़ क्या है
 

नमाज इस्लाम का दूसरा रुकन है , ईमान के बाद नमाज ही का दर्जा है कुरान शरीफ में इरशाद फरमाया ; اَقِیۡمُوا الصَّلٰوۃَ وَ لَا تَکُوۡنُوۡا مِنَ الۡمُشۡرِکِیۡنَ ( Sura ro'um) नमाज कायम करो और मुशरिकों में से ना बनो -

और सैंकड़ों जगह कुरान शरीफ में नमाज का जिक्र है कहीं नमाज कायम करने का हुक्म है कहीं नमाजियों की तारीफ है कहीं नमाज को बुरी तरह पढ़ने की बुराई है।

हदीस शरीफ में है कि बेशक क्यामत के रोज बंदे के आमाल में से पहले नमाज का हिसाब होगा,  बस अगर उसकी नमाज़ ठीक है तो कामयाब और बा-मुराद होगा और अगर नमाज़ खराब निकली तो नुकसान में पड़ेगा और कामयाबी से महरूम रहेगा।।

फिर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलेहि वसल्लम ( ﷺ ) ने इरशाद फरमाया कि 5 नमाजें अल्लाह ताला ने फर्ज की हैं -  जिसने नमाजो के लिए वजू अच्छी तरह किया, और उनको वक्त पर पढ़ा, और रुकु और सजदा पूरी तरह अदा किया, तो उसके लिए अल्लाह ताला के जिम्मे यह अहद है कि अल्लाह उसको बख्शीश देगा और जिसने ऐसा न किया तो उसके लिए अल्लाह ताला के जिम्मा कोई हद मतलब की बख्शीश नहीं है।। चाहे बख्शे ( माफ करना, मगफिरत करना , छोड़ देना ) चाहे अजाब दे। ... { मिश्कात शरीफ़} 

एक मर्तबा हजरत रसूल मकबूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सर्दी के जमाने में आबादी से बाहर तशरीफ ले गए, उस समय दरख्तों ( पेड़ ) के पत्ते झड़ रहे थे , आपने एक दरख्त की दो डालियां पकड़ ली तो और भी ज्यादा पत्ते झड़ने लगे वही आपके खास सहाबी हजरत अबूजर रजि अल्लाह ताला अन्हु भी थे, आपने उनको आवाज थी कि ए अबूजर उन्होंने जवाब दिया कि जी मैं हाजिर हूं, आपने फरमाया कि यकीन जाने मुसलमान बंदा अल्लाह की रजामंदी के लिए नमाज पढ़ता है तो उसके छोटे गुनाह इसी तरह झड़ जाते हैं जैसे यह पत्ते इस दरख़्त से झड़ रहे हैं ( मिशकात शरीफ़) 

एक बार हजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबियों से फरमाया के बताओ अगर तुम में से किसी के दरवाजे पर नहर हो जिसमें वह रोजाना 5 मर्तबा गुसल करता हो क्या उसके बदन का मेल ( गंदगी ) जरा सा भी बाकी रहेगा ? 

सहाबियो ने कहा जरा सा भी बाकी नहीं रहेगा , आपने फरमाया यही पांच नमाजो का हाल है कि उनके जरिया अल्लाह ताला छोटे गुनाहों को मिटा देते हैं ( बुखारी शरीफ़) 

एक बार हजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिसने नमाज की पाबंदी की उसके लिए क्यामत के रोज नमाज नूर होगा और उसके ईमान की दलील होगी और उसकी निजात का सामान होगा और जिसने नमाज की पाबंदी ना कि उसके लिए नमाज ना नूर होगी ना उसके ईमान की दलील होगी ना निजात का सामान होगी और क्यामत के दिन ये आदमी कारून, फिरौन और उसके वजीर हामान और ( मशहूर मुशरिक ) अबि बिन खल्फ के साथ होगा।।

बे वक्त नमाज़ पढ़ना:

हजरत अनस रजि अल्लाह ताला अन्हू से रिवायत है कि हजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि यह मुनाफिक की नमाज है जो बैठे हुए सूरज का इंतजार करता रहता है यहां तक कि जब सूरज में जर्दी ( पीला पन ) आ जाती है और सूरज शैतान के दोनों सींगों के दरमियान ( बीच ) आ जाता है तो खड़े होकर असर की नमाज के नाम से मुर्गे की तरह चार ठोंगे मार लेता है और उन ठोंगो में से जो हल्के सजदों की सूरत में मारी है, बस अल्लाह को जरा बहुत याद करता है (मुस्लिम शरीफ़) 

शैतान की दोनों सींगों के दरम्यान ( बीच ) होने का मतलब यह है कि जब सूरज तुलु या गुरुब होता है तो शैतान उसके सामने खड़े होकर अपने सिंग को हिलाता है जिससे जगमगाहट महसूस होती है और उसकी इबादत करने वाले उसे पूजते हैं 

जो मर्द या औरत बच्चों की परवरिश के ख्याल में या तिजारत या मुलाजीमत के धंधे में नमाज छोड़ देते हैं और कहते हैं कि हमारे पास समय ही नहीं है कि मैं नमाज पढ़ सकूं , तो उन लोगों को यह मुबारक हदीस पर गौर करना चाहिए।।

एक नमाज़ की कीमतहजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसकी एक नमाज़ जाती रही उसका इतना बड़ा नुकसान हुआ है जैसे किसी के घर के लोग, और माल ओ दौलत सब जाता रहा ( अत्तरगीब व अत्रहीब) 

नमाज की चोरी ;

एक मर्तबा हजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि सब लोगों से ज्यादा बुरा चोर वह है जो अपनी नमाज में चोरी करता है। यह सुनकर सहाबियों ने अर्ज किया के या रसूल अल्लाह नमाज की चोरी कैसी ?

आपने फरमाया कि ( नमाज की चोरी यह है कि ) उसका रुकू और सजदा पूरा अदा ना करें ( मिश्कात शरीफ़)

दीन इस्लाम में नमाज का रुतबाहजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि उसका कोई दीन नहीं जिसकी नमाज नहीं, नमाज़ का मर्तबा दीन इस्लाम में वही है जो सर का मर्तबा इंसान के जिस्म में है मतलब के इस तरह कोई शख्स बगैर सर के जिंदा नहीं रह सकता उसी तरह नमाज के बगैर आदमी ठीक तरह मुसलमान नहीं हो सकता (अत्तरगीब व अत्रहीब )

बच्चों को नमाज पढ़ाना मां-बाप की जिम्मेदारी है ;

हजरत रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपनी औलाद को नमाज का हुक्म दो जबकि 7 बरस के हो जाएं और नमाज ना पढ़ने पर उनको मारो जबकि 10 बरस के हो जाए और 10 वर्ष की उम्र हो जाने पर उनके बिस्तर भी अलग कर दो, एक को दूसरे के साथ ना सुलाओ ( अबू दाऊद शरीफ़)

आवश्यक चेतावनी :

नमाज में जो कुछ पढ़ा जाता है यानी अल्हम्दु शरीफ और दूसरी सूरतें और अत्ताहियात और दुआ ए कुनूत वगैरा इसको खूब अच्छी तरह सही करके याद कराना जरूरी है , जिसे ठीक तरह याद हो उसे सुना दो ( س، ص، ط، ت ) 

जैसे शब्दों का फर्क मेहनत करके ठीक किया जा सकता है और खूब दिल लगाकर अच्छी तरह से नमाज अदा करना चाहिए।।।

नमाज सही होने के लिए बहुत सी शर्तें और जरूरी चीजें हैं एक शर्त नमाज़ सही होने के लिए यह है की नमाजी आदमी निजासते हकीकी ( गंदगी) निजासते हुकमी से पाक हो, लिहाजा हम आपको अपनी दूसरे लेख में तहारत ओ निजासत के बारे में बताएंगे। 

आप हमसे इसी तरीके से जुड़े रहें और हमारे आर्टिकल्स को जरूर पढ़ते रहें जहां तक हो सके जितना हो सके दीन इस्लाम के खातिर  लोगों को शेयर करें ताकि आप शबाब के हकदार हो सके तो बस मिलते हैं हम आपसे अपनी अगली आर्टिकल्स में तहारत ओ निजासत के बयान के साथ। 

وعلیکم السلام ورحمتہ اللہ وبرکاتہ 

Post a Comment

0 Comments