1 . कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी से बढ़कर कोई अमल नहीं है।
कुर्बानी के दिनों में दूसरी इबादत हो के मुकाबले में करवाने का मन अल्लाह को सबसे ज्यादा पसंद है इसीलिए हजरत अम्मी आयशा सिद्दीका रजि अल्लाह ताला अन्हा से मरवी है नबी अकरम सल्ला वसल्लम ने फरमया :
" ما عمل آدمي من عمل يوم النحر , احب إلى الله من إهراق الدم , إنها لتاتي يوم القيامة بقرونها , واشعارها , واظلافها , وان الدم ليقع من الله بمكان قبل ان يقع من الارض , فطيبوا بها نفسا
तर्जुमा: कुर्बानी के दिन में कोई काम अल्लाह ताला को खून बहाने से ज्यादा पसंदीदा नहीं है, और यह कुर्बानी का जानवर क्यामत के मैदान में अपनी सींगों और बालों और खुरों के साथ आएगा, और कुर्बानी में बहाया जाने वाला खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह ताला के दरबार में कुबूलियत का मुकाम हासिल कर लेता है इसीलिए खुशदिलली से कुर्बानी कीया करो।
{ तिर्मीजी शरीफ़ 1493 }
2. कुर्बानी के बदले सदका काफी नहीं ।
कुर्बानी के दिनों में जानवर का अजी वाह करना ही लाजिम है, जानवर की कीमत के सदका से काम नहीं चल सकता , और जो शख्स ताकत के बावजूद कुर्बानी नहीं करेगा वह सख्त गुनहगार होगा क्योंकि वह वाजिब का तारीख है।
नोट: आजकल बहुत से मॉडल जहर वाले लोग कुर्बानी के बदले सदका करने पर जोर देते हैं तो उनकी यह बात शरीयत के बिलकुल खिलाफ है और हर चीज तवज्जो के लायक नहीं है।।
नीचे में आपको कुर्बानी से जुड़े हुए 10 ऐसे मसाईल बताऊंगा कि जिनका आपका जानना बहुत ज्यादा जरूरी है, यह सारे मसाईल हजरत मौलाना मुफ्ती मोहम्मद शफी साहब नुरुल्लाह उमर कदमो के रिसाला बहका में कुर्बानी और हजरत मुफ्ती शब्बीर साहब के आम रिसाला " मसाईल व कुर्बानी व अकीका" से लिया गया है।। { जमीउल फतावा 4/ 390 }
1. कुर्बानी के दिन
कुर्बानी के 3 दिन इस्लामी शरीयत ने बताया है मतलब के 10 , 11 और 12 जिल हिज्जा , इससे पहले या बाद में कुर्बानी करना मुअ'तबर ( अच्छा , बेहतर ) नहीं है. { आप के मसाइल और उनका हल 4/186 }
2. कौन से दिन कुर्बानी अफजल है ।
10 जिलहिज्जा को कुर्बानी करना सबसे अफजल है, फिर उसके बाद 11 फिर 12 को कुर्बानी करना अफजल है। { ज़करिया 9/458 }
3. रात में कुर्बानी करना
कुर्बानी के दिनों में रात में कुर्बानी करना भी ब कराहत मुअ'तबर है ( लेकिन रोशनी वगैरह का अच्छा इंतजाम करें , ऐसा ना हो कि अंधेरे की वजह से जिब्ह में कमी रह जाए । {जमीऊल फतावा }
4. कुर्बानी के समय में शहर और देहात का फर्क
कुर्बानी का असल समय 10 जिलहिज्जा की सुबह सादिक ( बहुत सवेरे ) से शुरू होकर 12 जिलहिज्जा के सूरज गुरुब ( सूरज डूबने ) होने तक रहता है , और जिस बड़ी आबादी में ईद की नमाज होती है वहां नमाज़ ए ईद उल अजहा के बाद ही कुर्बानी दुरुस्त होगी , और जहां नमाज़ ए ईद जाइज ना हो जैसे छोटे गांव देहात तो वहां सुबह सादिक के तुरंत बाद से कुर्बानी दुरुस्त है۔
( ہدایہ ٤ / ٤٢٩ , در مختار زکریا ٩ / ٤٦٠ , کراچی ٦ / ٣١٨ , بداںٔع الصناںٔع٤ / ١٩٨ , ہندیہ / ٥ ٢٩٥ , مسائل قربانی و عقیقہ ١٤ )
नोट : फिर भी देहात वालों के लिए अफजल ( बेहतर, अच्छा ) ये है कि सही ढंग से सूरज निकलने के बाद ही कुर्बानी करें।।
5. ईद उल अजहा की नमाज का समय
ईद उल अजहा की नमाज का असर वक्त 10 जिलहिज्जा की इशराक से लेकर जवाल तक है, इसमें जो नमाज पढ़ी जाएगी वह अदा कहलाएगी , और अगर किसी वजह से अगले दिन नमाज पढ़ी जाएगी तो वह कजा के दर्जे में होगी। { तहतावी अलल मराफी 532 }
6. ईद की नमाज के बाद खुतवा से पहले कुर्बानी
अगर ईद की नमाज के बाद खुतवा से पहले कुर्बानी की जाए तो दुरुस्त हो जाएगी लेकिन ऐसा करना अच्छा नहीं है बेहतर यह की खुतवा के बाद ही कुर्बानी की जाए। { जकरिया 9/461 }
7. इमाम ने बेला तहारत ईद की नमाज पढ़ा दी तो कुर्बानी का क्या हुक्म है
अगर इमाम ने भूले से बिना वजु के ईद की नमाज पढ़ा दी फिर ईदगाह में मजमा मुंतशिर होने के बाद उसे याद आया तो दोबारा ईद की नमाज का हुक्म नहीं है, लेकिन अगर मजमा मुंतशिर होने से पहले याद आ गया तो ईद की नमाज दोहराई जाएगी, फिर भी अगर कोई आदमी ऐसी सूरत में नवाज दोहराने से पहले कुर्बानी कर दे तो इस्तेहसानन उसकी कुर्बानी दुरुस्त मानी जाएगी। { जमीउल फतावा 4/376 }
8. ईदगाह की नमाज के बाद कुर्बानी
अगर ईदगाह में ईद की नमाज अदा कर ली गई हो और मोहल्लों की मस्जिदों में ईद की नमाज में देर हो तो भी कुर्बानी करना दुरुस्त है। { दर मुख्तार जकरिया 9/460 }
9. कुर्बानी दुरुस्त होने के लिए शहर में किसी भी जगह ईद की नमाज होना काफी है।
अगर शहर में किसी जगह ईद उल अजहा की नमाज पढ़ ली जाए तो पूरे शहर वालों के लिए कुर्बानी करना दुरुस्त हो जाता है, इसमें ईदगाह या जामा मस्जिद इत्यादि की नमाज पर कुर्बानी के सही होने का मदार नहीं है। {जमीउल फतावा 4/459 }
10. जिस शहर में कुर्बानी की जाए वहीं की ईद की नमाज का ऐतबार है।
अगर किसी शख्स ने दूसरे शहर में कुर्बानी का इंतजाम किया हो तो उसी शहर में ईद की नमाज के बाद कुर्बानी दुरुस्त होगी ( बिलफर्ज अगर मालिक के शहर में ईद की नमाज नहीं हुई होगी तो उसका इंतजार नहीं किया जाएगा।
{ तातार खानियाः जकरिया 17/422 }
निस्कर्ष: आज के इस लेख में आपने कुर्बानी के मुतल्लिक से 10 मसाइल को जाना, आप हमसे इसी तरीके से जुड़े रहें और हमारे आर्टिकल्स को जरूर पढ़ते रहें जहां तक हो सके जितना हो सके दीन इस्लाम के खातिर लोगों को शेयर करें ताकि आप शबाब के हकदार हो सके तो बस मिलते हैं हम आपसे अपनी अगली आर्टिकल्स में तहारत ओ निजासत के बयान के साथ।
وعلیکم السلام ورحمتہ اللہ وبرکاتہ
0 Comments