(1) हज़रत मुहम्मद साहब
मुमकिन है कि बहुत से लोगों को इस बात पर एतराज और हैरानी होगी के प्रसिद्ध व्यक्तियों में हजरत मोहम्मद साहब को सबसेेेेे ऊपर रखने की क्या वजह है?
1400 वर्ष गुजर जानेेे के बावजूद उनका असर इंसानों पर आज भी मजबूत और बहुत गहरें हैं
1400 वर्ष गुजर जानेेे के बावजूद उनका असर इंसानों पर आज भी मजबूत और बहुत गहरें हैं
यह एक अकेली ऐसी हस्ती है जो मजहबी और दुनियावी दोनों मैदानों में बराबर बराबर तौर पर कामयाबी हासिल की, ना ही हजरत मोहम्मद साहब ने अपने इस्लाम को बढ़ाना छोड़़ा (यानी कि इनकी लोगों में प्रचार करना), और ना ही दुनिया पर विजय पाना छोड़ा.
हजरत मोहम्मद ने अपने धर्म का प्रचार करना शुरू किया और दुनिया के महान मजहब ओं में से एक मजहब की बुनियाद रखी और इसका प्रचार करना शुरू कर दिया, हजरत मोहम्मद साहब एक बहुत ही बड़े असर रखने वाले सियासी रहनुमा भी बनकर उभरे, 1400 वर्ष गुजर जानेेे के बावजूद उनका असर इंसानों पर आज भी मजबूत और बहुत गहरें हैं.
आप दुनिया के तमाम लोगों को देखें तो उनकी यह खुशकिस्मती रही कि वह दुनिया के संस्कृति वाले जगह में पैदा हुए, और वहीं ऐसे लोगों में परवरिश पाए, जो आमतौर पर उनको आला तालीम, तहजीब पाने वाला या सियासी केंद्र था।
हजरत मोहम्मद साहब का जन्म लोगों के उल्टा हजरत मोहम्मद साहब का जन्म उत्तरी अरब के मक्का शहर के एक छोटे से खानाबदोश जिनको लोग कुरैश कहते, बनो हाशिम के खानदान में अब्दुल मुट्टलिब के घर हजरत अब्दुल्ला के नस्से हजरत आमना के गोद में 571 ईसवी 20 या 21 अप्रैल 626 विक्रमी सोमवार के दिन सुबह के वक्त पैदा हुए।
माता पिता का देहांत और लालन-पालन
यह तब कारोबार फन साइंस पढ़ने लिखने से बहुत दूर दुनिया का रिश्ता था, हजरत मोहम्मद साहब जब मां के पेट में 6 या 7 महीने के थे तो आपके पिता का देहांत हो गया, और जब हजरत मोहम्मद साहब 6 वर्ष के हुए तो आप की मां का देहांत हो गया.
फिर आपके दादा का भी देहांत हो जाता है, आपके चाचा ने हजरत मोहम्मद साहब की लालन पालन किया, कहने का मतलब यह है कि हजरत मोहम्मद साहब का लालन पोषण सामान्य अवस्था पर हुई, जैसा के मुसलमानों का ग्रंथ हमें बताताा है के हजरत मोहम्मद साहब उम्मी थे.
जिसे अगर हम अपने लफ्जों में कहे तो हजरत मोहम्मद साहब पढ़े-लिखेे नहीं थे, फिर हमें कुछ मुस्लिम रहनुमाओं से पता चलता है कि उनके ना पढ़नेेे लिखने में भी बहुुुत कुछ बातें हैं जिसकेेे बारे में हम आगेे बात करेंगे.
हजरत मोहम्मद साहब की पहली शादी
हजरत मोहम्मद साहब की पहली शादी 25 वर्ष की उम्र अहले शुरूत कि एक औरत से (जिनका नाम खदीजा बताया जाता है) से हुई, तो उनकी माली हालत में किसी हद तक बेहतरी पैदा हुई,
40 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लोगों में उनका एक आम इंसान ना होने का असर बैठ चुका था।
तब ज्यादातर अरब के लोग (खानाबदोश) मूर्तियों की पूजा क्या करते थे, वह अनगिनत देवी देवताओं को अपना खुदा भगवान समझा करते थे, मक्का में अलबत्ता दूसरे मजहब के लोग भी मौजूद थे लेकिन उनकी आबादी थोड़ी थी जैसे के ईसाई और यहूदी।
40 वर्ष की उम्र में आपको नवी बनाया गया
40 वर्ष की उम्र में आपको नवी बनाया गया
इन्हीं लोगों की वजह से लोगों को यह बात समझ में आने लगा था यह सच में कोई एक ईश्वर अल्लाह या खुदा है इस्लामिक ग्रंथों के हवाले से हजरत मोहम्मद साहब 40 वर्ष की उम्र में आपको नवी बनाया गया, (यानी एक अल्लाह की मुबारक तरीके से उनसे अपने फरिश्ते जिब्राइल से बात करते हैं और यह के उन्हें सच्चे अकीदे के लिए चुना गया है)
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धर्म का प्रचार
शुरू में 3 वर्ष तक वह अपने करीबी दोस्तों रिश्तेदारों में ही अपने नज़रियात (धर्म)का प्रचार करते रहे, करीब 613 या 612 ईसवी में उन्होंने सरेआम अपने धर्म की तबलीग शुरू की.
आहिस्ता आहिस्ता हजरत मोहम्मद साहब ने अपने खयाल वालों की संस्था बनाई, तो मक्का के सरदारों और बड़े लोगों को अपने लिए खतरा महसूस किया, फिर क्या था।
हिजरत का किसे कहते हैं
हजरत मोहम्मद साहब पर तरह-तरह के जुल्म और सितम शुरू कर दिए, इनके दोस्तों को अपने ही घर से निकालाा जाने लगा, और इन लोगों के माल व दौलत को छीना जाने लगा, इस्लामी ग्रंथों केे हवाले से 622 ईसवी में हजरत मोहम्मद साहब अल्लााह के हुकम से मदीना की तरफ हिजरत (चले) कर गए,(यह मक्का केे उत्तर में 450.4 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर है) वहीं उन्हें एक बड़े सियासत दान की हैसियत हासिल हुई.इस पूरी घटना को हिजरत कहा जाता है)
यह हजरत मोहम्मद साहब की जिंदगी का एक बहुत बड़ा हादसा था, मक्का में उन्हें कुछ दोस्तों की टीम मिली थी लेकिन मदीना में उनकी तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई, जल्द ही हजरत मोहम्मद साहब के व्यक्तित्व का असर लोगों को साफ-साफ दिखने लगा, वह एक मुकम्मल लीडर बन गए.
630 ईसवी में हजरत मोहम्मद साहब की जीत।
अगले कुछ वर्षों में उनके मानने वालों की तादाद में बहुत ही तेज बढ़ी, और मदीना मक्का के बीच कुछ जंग लड़ी गई, जो पूरा 630 ईस्वी में आपकी जीत और मक्का में विजय के तौर पर हुआ।(इस्लामिक रहनुमाओं के हवाले से तब तक कि यह इतनी बड़ी जंंग थी जिसमें किसी से ना कोई बदला लिया गया और ना ही किसी से वापस अपनी जगह जमीन छीनी गई)
632 इसवी और आपका देहांत
हजरत मोहम्मद साहब की जिंदगी के अगले ढाई वर्षो में अरब केेे खानाबदोश लोग इस नए मजहब के दायरे में दाखिल हुए, 632 ईस्वी में आपका जहर की वजह से देहांत हुआ तो आप दक्षिणी अरब के बहुत ज्यादा मजबूत सरदार बन चुके थे, अरब के खानाबदोश लोग मजबूत और जंगों के माहिर की हैसियत सेेेे जाने जाते थे, लेकिन वह कम थे, उत्तरी इलाकों में बड़ी आबादी के बादशााह केेे फौजियों के साथ उनकी कोई बराबरी नहीं थी।
इस्लामिक रहनुमाओं के हवाले से हिस्ट्री में पहली बाार उन्हें एक जगह जमा किया गया, यह एक सच्चे खुदा पर ईमान ले आए, उन थोड़े से अरब फौजों ने इंसानी तारीख में फतेह करने का एक हैरान कर देने वाला सिलसिला शुरू किया, उत्तरी अरब में सासानियोंन की नितनई इरानी सल्तनत थी।
उत्तर पश्चिम में बाजनतिनी या पूर्वी सल्तनत रोमा थी, अरब फौज का उनके प्रतिद्वंद्वी से कोई जोड़ नहीं था इसलिए जंग के मैदान में जोशीले अरबी फौजों का दबदबा रहा.
662,637,642 ईसवी की जंग
उसने देखते देखते,मेसोपोटामिया सीरिया , फिलिस्तीन पर विजय प्राप्त की,662 ईस्वी को मिस्र को बाजनतिनी सेे आजादी दिलाई, जबकि 637 ईस्वी में जंग ए कुदसीया और 642 ईसवी में नहावंद की जंग में ईरानी यहां तक कि हजरत मोहम्मद साहब के दोस्तों और सहाबा(हजरत अबू बकर और हजरत उमर बिन खट्टाब) के नेतृत्व में होनेे वाली इन इन शानदार जीत को मूसलमानों ने अपने आप को नहीं रोका।बल्कि 1711 ईसवी तक अरबी फौजों ने उत्तरीअफ्रीका
के पार बहरे दकियानूसी तक अपने फतेह के झंडे गाड़़ चुकी थीं.
फिर वो उत्तर की तरफ मुड़े और आहना ए जबरालटर को पार करके स्पेन में वैसी गोधक राज्य पर कब्जा किया।
एक दौर में तो यूं मालूम होता था कि मूसलमान पुरी यहूदी दुनिया पर कब्जा कर लेंगे, यहां तक के सात सो 32 ईस्वी में टूर की मशहूर जंग में जब के मुसलमान फौजी फ्रांस में दाखिल हो चुकी थी, अपनों की गद्दारी और किसी वजह से फ्रांक फौजियों ने उन्हें बहुत बड़ी शिकस्त दिलाई।
हिंदुस्तान की सरहदें
जंगो जदल की इस सदी में उन खानाबदोश लोगों ने हजरत मोहम्मद साहब के अल्फाज से हरारत लेकर हिंदुस्तान की सरहदों से बहरे दकियानोस तक एक बहुत बड़ी हुकूमत खड़ी कर ली। इतनीी बड़़ी सल्तनत के तारीख में इससे पहले ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती, इन लोगों ने सिर्फ विजय प्राप्त नहीं किए बड़े लोगों को अपने धर्म की तरफ भी मोड़ा, और इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करने से कभी ना रूके।लेकिन यह तमाम फुतुहात से कोई फायदा नहीं हुआ, ईरानी अगरचे इस्लाम से वफादार रहे लेकिन उन्होंने अरबों से आजादी हासिल कर ली स्पेन में सासरिया खाना जंगी जारी रही और बिल आखिर तमाम तमाम स्पेन पर से भी मुसलमानों का गरबा हट गया पुराने दौर के यह दो निशान मेसोपोटामिया और मिश्रा अरबों के अंडर ही रहा यही यही चीजें उत्तरी अफ्रीका में भी मौजूद रहा अगली शादियों में यह नया मजहब मुस्लिम जीते हुए इलाके की हकीकी सरहदों से भी ज्यादा फैल गया आज अफ्रीका और उस्ता एशिया में इस मजहब के करोड़ों अरबो माननीय वाले मौजूद हैं यही हाल पाकिस्तान उत्तरी हिंदुस्तान और इंडोनेशिया में भी है.
इंडोनेशिया में एक मुसलमानों की संस्था
इंडोनेशिया में तो इस मजहब ने एक एक जगह जमा कर देने वाले संस्था का एक अहम रोल निभाया है वर्ली सगीर पाको हिंदी में हिंदू मुस्लिम के झगड़े (मुसलमानों को बढ़ने से रोकने में अहम रोल निभा रही है और बहुत बड़ी रुकावट बन रही है)अब सवाल यह है कि हम किस तरह इंसानी तारीख पर हजरत मोहम्मद साहब के असर का अंदाजा कर सकते हैं, तमाम मजहब की तरह इस्लाम में भी अपने माननेवाले की जिंदगीयों पर गहरे असर को छोड़ रखा है जिसे फितरत इंसान चाहकर भी नहींं मिटा सकती, यही वजह है कि हमारी सोच और हमारे लिखनेे में तमाम धर्म और तमाम मजहब को तैयार या बनाने वाले मौजूद हैं,
मोहम्मद साहब को शीर्षक रखने की वजह
इस वक्त ईसाई मुसलमानों से 2 गुना ज्यादा है इसलिए यह बात अजीब महसूस होती है कि हजरत मोहम्मद साहब को ईसा मसीह से ऊपर क्यों रखा गया है, इस बात की दो बुनियादी वजह है।
(1) ईसाई को बढ़ावाा देने हजरत ईसा मसीह का किरदार की निस्बत इस्लाम को बढ़ावा देने में हजरत मोहम्मद साहब का किरदार कहीं ज्यादा भरपूर और अहम रहा है, जहां तक हुआ ईसाई धर्म कोो बढ़ावा देने में हजरत ईसा मसीह के बुनियादी अखलाक और अकीदे के एतबार से ज्यादा रही -सेंट पॉल ने ही सही मतलब में ईसाई धर्म को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहे हैं, उसने ईसाई धर्म के मानने वालों कोो बढ़ाया भी है और वह एक नया अहद-नामा केेे एक बड़े हिस्से का लेखक भी है।
दूसरी तरफ हजरत मोहम्मद साहब ना सिर्फ इस्लाम धर्म को बढ़ावा देने में लगे थे बल के उसकी जरूरी बातें को भी लोगों के सामने आकर कहा और जहां तक हो सका लोगों को इस्लााम की तरफ खींचे चले आने पर मजबूर कर दिया, इसके अलावा हजरत मोहम्मद साहब ने इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए बहुत मशक्कत और परेशानी का सामना भी किया और मजहबी इबादत को लोगोंं के सामने साफ-साफ बतलाया.
हजरत मोहम्मद साहब ना सिर्फ एक कामयाब दुनिया दार थे।
हजरत ईसा मसीह का उल्टा हजरत मोहम्मद साहब ना सिर्फ एक कामयाब दुनिया दार थे बल्कि बहुत बड़ेे नेता, सियासतदान, लीडर, बल्कि एक मजहबी रहनुमा भी थे जिन्होंने ना सिर्फ इस्लाम को बढ़ाने में ही ध्यान दिया बल्कि इनके सााथ सथ इस्लाम की अच्छाइयों को भी और इन्हें करने वाले कुछ नेक लोगों को भी पाने वाले पुरस्कार के बारे में बतलाया, आप यकीन करें ना करें हजरत मोहम्मद साहब अरब के खानाबदोश होंने दुनियाा में जितनी भी युद्ध के विजेता बने उसके असल ताकत हजरत मोहम्मद साहब ही थे इस वजह से वह तमाम इंसानी तारीख में सबसेे ज्यादा असर रखने वाले सियासी नेता साबित होते हैं।बहुत से अहम तारीखी वाक्यात किससे कहानी के हवाले से कहा जाताा है हजरत मोहम्मद साहब अपरिहार्य थे, अगर उनकी रहनुमाई करने वाला कोई खास सियासी नेता ना भी होता तो अरब के खानाबदोश लोग पूरी दुनिया पर छा ही जाते, उदाहरण के तौर पर अगर साइमन बोलयोर कभी पैदा ना होता।
फिर भी उत्तरी अमेरिकी कालोनियां स्पेन से आजादी प्राप्त कर ही लेती, लेकिन अरब केे बारे मैं ऐसा नहीं कहा जाा सकत है।
हजरत मोहम्मद साहब से पहले तारीफ में ऐसी कोई मिसाल मौजूद नहीं।
हजरत मोहम्मद साहब से पहले ऐसी कोई तारीख में मिशाल मौजूद नहीं है इस काम पर एतवार करने में एक रत्ती बराबर भी कोई हिचकिचाहट नहीं है के पैगंबर के बगैर इलाके को फतह करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था, तारीख ए इंसानी इन जैसी ही एक मिसाल 13वीं सदी ईस्वी में मंगोलों की फुतुुुुहात हैं
जो बुनियादी तौर पर चंगेज खान को ही जाता है, यह अरबों की फतेह करने से कहीं ज्यादा लंबी और चौड़ी होने केे बावजूद भी ज्यादा दिन तक टिक नहीं सके आज मंगोलों के कब्जा में सिर्फ वही इलाके बाकी रह गए हैं जो चंगेज खान केेे दौर में उनके अंडर आता था.
अरबी लोगों की भाषा तारीख कल्चर और रहना सहना
अरब की फतेह करने का मामला इससे बहुत ज्यादा अलग-थलग है इराक से मराकश तक अरबी लोगों की एक जंजीर फैली हुई है यह सिर्फ अपने एक ही अकीदे इस्लाम ही की वजह से इकट्ठा नहीं है बल्कि इनकी भाषा, तारीख, कल्चर, और रहना सहना भी अलग है, कुरान ने मुस्लिम तहजीब में एकताई भी पैदा की है।
और यह हकीकत भी है के इसे अरबी में लिखा गया (मुस्लिम रहनुमाओं के हवाले से कुरान को हजरत मोहम्मद साहब ने खुद नहीं लिखा है वह अल्लाह की तरफ से हजरत मोहम्मद साहब पर एक फरिश्ते हजरत जिब्राइल के द्वारा उतारा गया है) किसी हद तक यह बात भी बात समझ में आती है कि क्योंकि हजरत मोहम्मद साहब पढ़े-लिखे नहीं थे.
अरब रियासतों के बीच मामला संगीत
शायद इसी वजह से अरबी जवान ना समझों के बहसों मुबाहिसा मैं उलझ कर बिखरी नहीं, जैसा के 13वीं सदी में ऐसी कोई गुंजाइश फायदा हो चली थी इस बात में कोई शक नहीं कि अरब रियासतों के बीच एक इखतिलाफ और लड़ाई झगड़े छोड़ चुकी थी।
यह बात समझने के काबिल भी है लेकिन यह हमें इतिहास के उन अहम मकसद तक नहीं पहुंचा सका जहां तक हमने जाने की कोशिश की, उदाहरण के तौर पर ईरान और इंडोनेशिया दोनों तेल पैदा करने वाले और मुस्लिम देश भी हैं।
लेकिन 1973-74 इसवी के ठंडी के मौसम में होने वाले तेल की तिजारत के फैसले में एक साथ शामिल नहीं थे यह सिर्फ इत्तेफाक नहीं है के तमाम अरब रियासतें और सिर्फ अरब रियासतें ही इस फैसले में मौजूद थें.
हजरत मोहम्मद साहब ने अपने कामों से मुसलमानों का ही नहीं बल के दुनिया में रहने वाले हर लोगों का दिल जीता है।
यह बात हम जानते हैं कि सातवीं सदी ईसवी मैं खानाबदोश लोगों की फतेह ने इंसानी तारीख पर एक गहरा, और एक ऐसा असर छोड़ रखा है जिसे लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा।यह धार्मिक और दुनिया दार का एक ऐसा हादसा है जिसे ना ही लोगों ने हजरत मोहम्मद साहब की जिंदगी से पहले कभी सोचा नहीं होगा।
इसलिए मेरे ख्याल में हजरत मोहम्मद साहब को इंसानी तारीख में सबसे ज्यादा असर रखनेे वाले व्यक्ति का दर्जा देने को मनचाहा।
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Thanks
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