एक बच्ची और पिता

26अगस्त-2020 चिलचिलाती धूप, गुमशी वाली गर्मी, बहुत ज्यादा प्रेशर का प्रभाव, रास्ते से गुजर हुआ दोपहर का वक्त था.



एक बच्चा और पिता ( A child and father)

                              अचानक


 मम्मी से आलू के पैसे लेकर आलू ले आईए.
 अपने पिता से कहती हूई।


असल में मामला क्या है?
ऐसा क्या हुआ जो मुझे उस पर एक ब्लोग तैयार करने को मन चाहा?

ऐसी उसमें क्या खास बात थी जिसकी वजह से मैं मजबूर हो गया,के मैं उस पर एक निबंध लिखूं?
तो मैं आपको बताता हूं के हुआ क्या है।
वो छोटी सी बच्ची अपने पिता को आलू लाने के लिए कह रही है, क्योंकि वह छोटी सी बच्ची एक छोटी सी गुपचुप दुकान खोल रखी थी, जिसमें उसे बच्चों की ग्राहक की भीड़ जमा हुई जहां उसने आलू कम पाया और उसने अपने दूर खड़े पिता वो ललक और वह झलक दिखीं के मैं खुद को रोक से आलू लाने के लिए कहा।

उसकी उस आवाज में मुझे नहीं पाया कि मैं उसके बारे में आपको बताऊं।

क्योंकि वह बहुत गरीब गहराने से ताल्लुक रखती है, और उसके पिता बिमार भी,
आखिरकार दो रूपए हो ए जो मैं अपने घर की हालात को संजाभाल सकूं.

जी हां सही सुना आपने यही हकीकत है ताके वो रुपए कमाकर अपनी अम्मी को दे सके।

ताकि उसे दो वक्त की खाने की रोटी मिल सके।
एक छोटी वो खुद को इस लायक समझती है जबकि शायद उसने ना किसी स्कूल का मुंह देखा होगा और ना ही किसी प्रोफेसर या टीचर के लेक्चर में बैठी होगी और ना ही उसने किसी किताब में पढ़ा होगा कि मां-बाप क्या होते हैं मां के पैरों के तले स्वर्ग होता है और पिता का मान सर्व मान होता फिर भी उसे इस बात का एहसास है।

मैं जो भी कुछ हूं या जो भी कुछ कर रही हूं उसकी असल में हकीकत ही मेरे माता पिता वही माता-पता  जिन्होंने हमें कभी स्कूल नहीं भेजा बात भी हकीकत है।
उस बच्चे की उम्र जिस वक्त स्कूल जाने की है वह एक छोटे से गुपचुप की दुकान लेकर बैठती है तो यकीनन यह बात साफ है कि उन्होंने कभी स्कूल नहीं देखा होगा।

                         

                   लेकिन     

              
एक पढ़ा लिखा ये कहता फिरता है कि मेरे माता-पिता ने मेरे लिए क्या किया है किया ही क्या है उसने हमारे लिए, जो कुछ हमने किया वह हमने खुद से किया है मैं पूछना चाहता हूं उस पढ़े-लिखे इंसान से क्या आप पैदा भी खुद हुए या आप को आपकी मां ने पैदा किया है।

उसके बाद आप खुद ही बड़े या आपको आपके पिता ने अपनी उंगली का सहारा देकर इतनी बड़ी जमीन पर चलना सिखाया जब आपको पेंसिल पकड़ना नहीं आता था तो उस मां ने आपको अपने हाथों से पेंसिल पकड़ कर लिखना सिखाया है।

जब आप पानी की जगह मम कपड़े की जगह अपड़ा यहां तक कि बोलने की जगह आप रोना जानते थे उस वक्त उन्होंने आपको समझा लेकिन आज आप जब बड़े हो गए तो कहते हैं वह हमारी बात समझ नहीं पाता।

                         पता नहीं


कुसूर आपकी तालीम का है या फिर आपका है अगर कुसूर तालीम का है तो अच्छा तो यही होता एक मां बाप अपने बच्चे को ना पढ़ाते, बल्कि उसे एक गुपचुप की दुकान खुलवा कर बिठा देते, अगर कुसूर आपकी तालीम का नहीं है तो आपका है तो मैं कहूंगा।

आपसे हजार वां करोड़ मिलियन विलियन ट्रिलियन वह बच्ची आपसे अच्छी है जो न कभी किसी स्कूल गई और ना ही किसी किताब को पढ़ा और ना ही कभी किसी बड़े को सुना लेकिन उसके अंदर एक अहसास पैदा हो गया।

जो वह आप से उस बच्चे को अलग करता है  ये बात आप या हम नहीं समझ सकते क्योंकि हम अभी पिता नहीं हैं,
लेकिन वो वक्त भी दूर नहीं है जब हम ‌पिता हो, और हमारे बच्चे हमारे सामने ऐसी बात कहे,
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कितना मुश्किल वक्त होगा।

हमारी फैमिली एक गाड़ी की तरह है जिसे ड्राइव तो हमारी मां करती है उसे किस एंगल से मुड़ना है उसे कहां किसी स्पीड में लेकर चलना है किस बच्चे को किस तरह हैंडल करना है जिस बच्चे के मन में क्या चल रहा है।

उसे समझना है टाइम पर इसे टिफिन स्कूल जाने के बैग कपड़े जूते चप्पल मौजा बनियान टाई बेल्ट यहां तक के अंडरवियर भी वक्त होने से पहले लाकर देना है कहीं हमारे बच्चे का स्कूल न छूट जाए या आफिस ना छूट जाए इतना सब कुछ करने के बाद भी हम आपको एक अच्छा ड्राइवर नहीं मानते यानी फैमिली ड्राइवर नहीं मानते हमारा कहना होता है।

उन्होंने हमें सही से गाइड नहीं किया फिर चलते हैं दूसरी ओर जिसे दुनिया पिता पापा के नाम से जानती है यह फैमिली के गाड़ी के ड्राइवर तो नहीं है लेकिन यह वह है जो पेट्रोल की जगह क्योंकि गाड़ी चलने के लिए पैट्रोल की जरूरत पड़ती है और फैमिली गाड़ी चलने के लिए पिता के खून और पसीने की जरूरत पड़ती है।

जो वो दिन रात  इसी में लगे रहते हैं, अपनी खुशियों को कुर्बान कर के अपने त्यौहारों को छोड़कर अपनी परेशानियों को भूल कर अपने दुखों को दरकिनार करके अपनी मासूम सी जिंदगी को  एक तरफ रख कर वह अपने घर से निकल जाते हैं सिर्फ इसलिए कि उसके बच्चे कुछ अच्छा कर जाएं और देश दुनिया में अपना नाम रोशन कर लें।


                               फिर


उस पिता का एक अनजान से शहर में जाना होता है और वहां ना कोई आदमी और ना कोई आदम जात उसे जानता पहचानता है वह अनजान सा रास्ता कुछ समझ नहीं आने वाला दिन करे तो करे क्या जाएं तो जाएं कहां फिर भी अपने एक फटे बैग को अपने दाएं कंधे पर उठाए हुए एक
छोटी  मोटीसी कंपनी के दरवाजे पर ठहरते हैं।

और कहते हैं भाई मुझे काम दोगे वह आदमी थोड़ी देर तक गौर से देखता है फिर पूछता है आप क्या करते हैं कहां से आए हैं करना क्या चाहते हैं आप काम क्या क्या जानते हैं ऐसे ऐसे सवालात पूछता है।

लेकिन फिर भी वह तमाम तर चीजों को बर्दाश्त करते हुए अपनी मेहनत मशक्कत मोहब्बत के साथ दिन रात काम करता है सिर्फ उनका मकसद कुछ नहीं होता बस सिर्फ एक मकसद होता है ताकि हमारे बच्चे कुछ कर जाएं देश दुनिया में नाम रोशन कर दें फिर हम कहते हैं आपने हमारे लिए क्या किया है जो भी कुछ किया है सब हमने खुद किया है।

                  मैं कहता हूं   

अगर इस पोस्ट और ब्लोग को पढ़ने के बाद भी आपकी आंखों में आंसू ना आए और आप अपनी पिछली गलतियों पर शर्मिंदा ना हो तो आपकी तालीम का कोई फायदा नहीं हुआ और ना ही आपके बड़े बनने का अगर एक ऊंचा तालीम आपका अपने मां-बाप के आंखों के आंसू न पोंछ सका।

उनके दर्द और तकलीफों को ना समझ सका तो फिर होना तो यह चाहिए कि आपको भी आपके मां-बाप किसी गुपचुप की दुकान पर बैठा देते ताकि आपको अपने मां-बाप की कीमत और अहमियत समझ में आती।

मैं और ज्यादा अब कुछ नहीं कहना चाहता हूं बाकी आप खुद समझदार हैं।

1.एक पढ़ी लिखी को नीची नजरों से और ना पढ़े लिखे को ऊंची नजरों से देखा जा रहा है?

2.एक समाज का वह बच्चा जिसे ना हस्ताक्षर सही से करना आता हो और एक वह बच्चा जिनके पास कई डिग्रियां मौजूद हो लेकिन फिर भी हस्ताक्षर ना करने वाले बच्चे को अच्छा कहा जा रहा है इसकी क्या वजह है?
3. हम आज अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने से क्यों डरने लगे हैं?
 इन सारे सवालों का जवाब हम अपनी अगली पोस्ट 1.2 में जरूर देंगे और वह हम आपको यह बात जरूर बताएंगे ये क्यों लोगों का पढ़ाई लिखाई से विश्वास उठ गया है क्यों आज के माता-पिता ये बात कहते हैं कि क्या करेंगे हम अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर हमने देखा है जो पढ़े लिखे हैं वह किस लायक हैं।

                   

                        प्रार्थना

आपसे निवेदन है कि आप हमारी अगली पोस्ट पर जरूर आएं और साथ में अपने दोस्तों को भी लाएं ताकि वह इस पोस्ट को पढ़ें और उसे एहसास हो के  हमारे चाल चलन ने शिक्षा के स्तर को कितना नीचे गिरा दिया है शिक्षा जिसने हमें फर्श से अर्श पर पहुंचाया था आज हमने उसे या हमारे कैरेक्टर ने बिहेवियर ने हमें कितना नीचे गिराया है मुझे उम्मीद है कि आपको हमारी यह पोस्ट अच्छी लगी, दोस्तों मैं आपसे बार-बार यही कहूंगा यह कोई कहानियां किस्सा नहीं है।

मिलकर यह मेरे एक दिल की आवाज है जो मैं तमाम दुनिया को सुनाना चाहता हूं मुझे उम्मीद है आप हमारे साथ जरूर खड़े होंगे। 

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